
मधु, मधुमक्खियों द्वारा फूलों से रस एकत्रित करके तैयार किया जाता है।मधु एक हानिरहित पूर्ण भोजन तथा पौष्टिक तत्व प्रदान करने वाला खाध पदार्थ है। मधुमक्खी पालन एक अत्यंत लाभप्रद व्यवसाय है।
इससे हमें मधु, मोम, मधुमक्खी-गोंद आदि की प्राप्ति होती है जो हमारे जीवन में काफी महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही मधुमक्खियों के माध्यम से बेहतर पर-परागण के कारण फसलों से अच्छी उपज भी प्राप्त होती है।मधुमक्खी पालन के लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता नहीं होती है। अतएव छोटे किसान एवं भूमिहीन व्यक्ति भी इस व्यवसाय को सरलतापूर्वक अपना सकते हैं।मधुमक्खी पालन के लिए भारी शारीरिक कार्य की आवश्यकता नहीं होती है, अतः बच्चे एवं स्त्रियाँ भी इस कार्य को प्रशिक्षण प्राप्त कर आसानी से कर सकते हैं। आजकल सरकार द्वारा रानी मधुमक्खी समेत बक्से भी अनुदान पर उपलब्ध कराये जा रहे हैं। बक्से में तीन तरह के मधुमक्खी होते है रानी, ड्रोन और वर्कर। जिसमे वर्कर को सुरक्षा से लेकर रानी के लिए खाना लाने समेत कई तरह के कार्य होते है। रानी के घर को कावेरी का घर और नर के घर को ड्रोन का घर कहते है। यह मुख्यतः फूलों पर से पराग एवं मीठी रस को ढोकर अपने बक्से के छत्ते में इकट्ठा करती है। अधिक फूल वाले मौसम में एक बक्सा पांच से सात किलो शहद प्राप्त होता है। उत्पादन बढ़ने से इसकी उपयोगिता और महत्ता को लेकर खादी ग्रामोद्योग एवं खुले बाजार समेत विदेशों में काफी मांग है।
इससे हमें मधु, मोम, मधुमक्खी-गोंद आदि की प्राप्ति होती है जो हमारे जीवन में काफी महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही मधुमक्खियों के माध्यम से बेहतर पर-परागण के कारण फसलों से अच्छी उपज भी प्राप्त होती है।मधुमक्खी पालन के लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता नहीं होती है। अतएव छोटे किसान एवं भूमिहीन व्यक्ति भी इस व्यवसाय को सरलतापूर्वक अपना सकते हैं।मधुमक्खी पालन के लिए भारी शारीरिक कार्य की आवश्यकता नहीं होती है, अतः बच्चे एवं स्त्रियाँ भी इस कार्य को प्रशिक्षण प्राप्त कर आसानी से कर सकते हैं। आजकल सरकार द्वारा रानी मधुमक्खी समेत बक्से भी अनुदान पर उपलब्ध कराये जा रहे हैं। बक्से में तीन तरह के मधुमक्खी होते है रानी, ड्रोन और वर्कर। जिसमे वर्कर को सुरक्षा से लेकर रानी के लिए खाना लाने समेत कई तरह के कार्य होते है। रानी के घर को कावेरी का घर और नर के घर को ड्रोन का घर कहते है। यह मुख्यतः फूलों पर से पराग एवं मीठी रस को ढोकर अपने बक्से के छत्ते में इकट्ठा करती है। अधिक फूल वाले मौसम में एक बक्सा पांच से सात किलो शहद प्राप्त होता है। उत्पादन बढ़ने से इसकी उपयोगिता और महत्ता को लेकर खादी ग्रामोद्योग एवं खुले बाजार समेत विदेशों में काफी मांग है।
मधुमक्खियों की प्रजातियाँ
भारत में मधुमक्खियों की चार प्रजातियाँ पायी जाती है।
- पहाड़ी मधुमक्खी (एपिस डोरसाता): ये अच्छी मात्रा में शहद एकत्र करने वाली होती है। इनकी एक कॉलोनी से 50 से 80 किलो शहद मिलता है।
- छोटी मधुमक्खी (एपिस फ्लोरिया): इनसे बहुत कम शहद मिलता है। एक कॉलोनी से मात्र 200 से 900 ग्राम शहद ही ये एकत्र करती है।
- भारतीय मधुमक्खी (एपिस सेराना इंडिका): ये साल में एक कॉलोनी से औसतन 6 से 8 किलो तक शहद देती है।
- यूरोपियन मधुमक्खी (इटालियन मधुमक्खी): इनकी एक कॉलोनी से औसतन 20 से 40 किलो तक शहद मिलता है।
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